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बेटी

#बेटी

एक घर था कुछ लोग थे,

कुछ लोग थे एक बेटी थी,

एक बेटी थी जिसके सपने थे,

कुछ सपने थे जो ऊँचे थे |

कुछ ऊँचे थे जो मान्यताएँ थी,

कुछ मान्यताएँ थे जो रुकावट थी,

कुछ रूकावटे थी जो अपने भी थे,

कुछ अपने थे जो डरते थे,

डरते थे सोच से, समाज की,

समाज था जिसकी कहावते थी ||
कहावते थी की तुम लड़की हो,

लड़कियों के कई दायरे होते है,

दायरे सपनो के, हँसने के, जीने के |

जीने का तुम्हे वो अधिकार कहाँ है,

वो इज़्ज़त और वो प्यार कहाँ है ||
क्या करोगी तुम नौकरी ले कर |

इस ज़माने से अकेले लड़ कर ||

सीखना है तो,सीखो कुछ घर के काम |

भूल जाओ नौकरी और बाकि ताम-झाम ||

तुम्हारा आगे बढ़ना दुनिया को, सहा नही जाता है |

समाज कहता है,बेटी की कमाई खाता है ||

करना है कुछ, तो चूल्हा-चौका करो |

दिन भर चूल्हे की आग में जलो ||

तुम्हारा सपने देखना, वक़्त की बर्बादी है |

मंजिल तुम्हारी सिर्फ और सिर्फ शादी है ||
इस कदर सपनो को कुचल दिया गया,

कुचल दिया गया उन अरमानो को,

अरमान जो उसके जीने का सहारा थे,

सहारा थे आज़ाद उड़ने के सपने के |

कुछ सपने थे जो टूटे थे

टूटा था वो आत्मविश्वास था

आत्मविश्वास जो उसे खुद पर था

खुद को उसने खो दिया, सपनो से मुह मोड़ दिया ||
एक घर था कुछ लोग थे,

कुछ लोग थे एक बेटी थी |

एक बेटी थी जिसके सपने थे,

कुछ सपने थे जो ऊँचे थे ||
लडकी होना गुनाहा नही…..✍

!! प्यारी बिटिया- SaveGirls !!

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